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"मानसिकता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

Thursday, September 15, 2011

आज से लगभग 30 साल पुरानी बात है। तब मैं खटीमा से 15 किमी दूर बनबसा में रहता था। उन दिनों मेरी मित्रता सेना से अवकाश प्राप्त ब्रिगेडियर गौविन्द सिंह रौतेला से हो गई थी। जो निहायत इंसाफपसंद और खरी बात कहने वाले व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे।

एक दिन मैं अपने क्लीनिक से दोपहर के भोजन के लिए जा रहा था कि रास्ते में ब्रिगेडियर साहब भी मिल गये। हम दोनों लोग बातें करते हुए जा रहे  थे तभी हमने देखा कि एक दुकानदार और उसका लड़का झगड़ा कर रहे थे। बेटा पिता को मार रहा था और लोग तमाशा देख रहे थे। तभी ब्रिगेडियर साहब ने मेरा साथ छोड़कर दुकानदार के लड़के को पकड़ा और जम कर उसकी मार लगा दी। साथ ही यह हिदायत भी दे दी कि अगर भविष्य में ऐसा किया तो जेल के सींखचों के भीतर तुमको करा दूँगा। पैंसठ साल की उमर में ऐसा जज़्बा देखकर मैं भी दंग रह गया।
रौतेला जी का देहावसान लगभग 95 साल की आयु में हुआ है मगर मैंने उन्हें अन्त तक कभी खेतों में ट्रैक्टर चलाते हुए और कभी अपनी जिप्सी या जीप पर बाजार-हाट के काम से जाते हुए ही पाया था।
इनके पास यूँ तो फार्म पर कई गाय भैंसे थी मगर एक गाय बहुत दुधारू थी। दुर्भाग्य से उसका एक थन खराब हो गया था। अतः तीन ही थनों में दूध आता था। एक दिन एक व्यापारी ने कहा कि ब्रिगेडियर साहब आप इसे बेच दीजिए। मैं अच्छे दाम दिला दूँगा।
इस पर ब्रिगेडियर साहब बोले कि मैं इसे किसी कीमत पर नहीं बेचूँगा। इसने हमारी बहुत सेवा की है। अतः हम भी अन्त तक इसकी सेवा करेंगे।
इधर मुझे कल ऐसा ही एक हृदय विदारक दृश्य देखने को मिला। मेरे पड़ोस में रहने वाले एक व्यक्ति की बकरी को फालिस मार गया था और वो खड़ी नहीं हो पा रही थी। उसे लेकर वह पशु चिकित्सालय गया तो डॉक्टर ने दो इंजक्शन लगा दिये और कहा कि इसका इलाज आपको कई दिनों तक कराना पड़ेगा।

तभी एक बकरकसाब जो उसके पीछे-पीछे लगा हुआ था उससे बोला कि यह अब ठीक होने वाली नहीं है। इसलिए आप लोग इसको मुझे बेच दीजिए। बकरकसाब की बात सुनकर बकरी के मालिक के मन में भी लालच आ गया और उसने 3000 रुपये की बकरी को 900 रुपये में बकरकसाब को बेच दिया।


उसकी यह मानसिकता देखकर मेरे मन में बहुत दुख हुआ और ग्लानि भी हुई और यह स्वाभाविक प्रश्न उठा कि मांसाहारी लोगों को क्या बाजार से अच्छा मांस खाने को मिलता है?
साथ ही मुझे यह भी आभास हुआ कि हर एक व्यक्ति ब्रिगेडियर गोविन्द सिंह रौतेला जैसा नहीं हो सकता है।

12 comments:

prerna argal said...

बहुत ही अच्छी शिक्षाप्रद लघु कथा /हर तरह की सोच रखनेवाले लोग होतें हैं /अच्छी भावनाओं और सेवाभाव रखनेवाले इंसान अभी भी कम है इस दुनिया में /लोग तो अपने बूढ़े माता -पिता को भी आश्रम में भेज देते हैं /तो जानवर की सेवा करने की तो बात ही अलग है और वो भी तब जब वो किसी काम का नहीं रह गया हो / बधाई आपको इतनी अच्छी कहानी के लिए /
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया /आशा है आगे भी आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को मिलता रहेगा /

Mansoor ali Hashmi said...

शिक्षाप्रद उदहारण. इत्तेफाक से मेरी भी एक पोस्ट में भी इन्ही दोनों पशु पात्र का ज़िक्र हुआ है, जो इस तरह था....
At http://mansooralihashmi.blogspot.com/search/label/Animality

पशु-धर्म

साम्प्रदायिक दंगा?
नही, बल्कि 'साम्प्रदयिक झगड़े जैसा कुछ' , लग रहा था लोगों को।
इनमें तिलक-धारी भी थे, टोपी-धारी भी, अनेकानेक अन्य भी,
तालियाँ बजाते हुए,अटठहास करते हुए लोग,
सर फुटव्वल की आवाज़े,
झूमते हुए लोग,
खून की धार बह निकलना,
सहमते हुए लोग!
भागते हुए लोग ?
ज़ख़्मों से चूर,
थक कर,
लाचार से बैठे हुए,
दो निरीह प्राणी,
कौन?
एक हिन्दू की बकरी,
एक मुसलमान की गाय्।
ख़ामोशी से एक दूसरे को टकते हुए,
दर्शको के अद्रश्य हो जाने पर,
बकरी मिमियायी ,
गाय रम्भायी,
दौनो को एक-दूसरे की बात समझ में आयी,
बकरी गाय की पीठ पर सवार हुई,
गाय उसे पशु-चिकित्सालय के द्वार पर छोड़ आयी।

मन्सूर अली हाशमी

संजय @ मो सम कौन... said...

सही कहा है आपने, हर आदमी ब्रिगेडियर साह्ब की तरह नहीं हो सकता।

Asha Lata Saxena said...

बहुत अच्छा और सही विचार |
अच्छी रचना |आभार
आशा

ZEAL said...

निर्दयता की मिसाल निकला वह। सच में ब्रिगेडियर जैसे सब नहीं होते।

रविकर said...

बधाई शास्त्री जी |
धन्य हैं ब्रिगेडियर जैसे लोग ||
मंसूर जी का भी आभार ||

एक हिन्दू की बकरी,
एक मुसलमान की गाय्।
ख़ामोशी से एक दूसरे को टकते हुए,
दर्शको के अद्रश्य हो जाने पर,
बकरी मिमियायी ,
गाय रम्भायी,
दौनो को एक-दूसरे की बात समझ में आयी,
बकरी गाय की पीठ पर सवार हुई,
गाय उसे पशु-चिकित्सालय के द्वार पर छोड़ आयी।

रेखा said...

सच में सब लोग एक से नहीं होते हैं .........विचानीय प्रसंग

Maheshwari kaneri said...

सच में ब्रिगेडियर जैसे सब नहीं होते।.....

Unknown said...

dr.saheb meri baat es lekh m aayi ki,insan hokar hum kyon janweron ka bhojan karate hain ?umada lekh sadhuwad.

दिलबागसिंह विर्क said...

सोचने को विवश करता प्रसंग

anita agarwal said...

ajkal log apne ma-baap ko kumbh ke melae me chodd jate hain... vridh ashram mei bhej dete hain to phir yahan to pashuon ki baat ho rahi hai... har vyakti ek jaisi samvedna nahi rakhta...
mansoor saheb ki rachna bhi utkrisht hai....

नापतोल.कॉम से कोई सामान न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
1- Camera is not working.
2- U-Tube is not working.
3- Skype is not working.
4- Google Map is not working.
5- Navigation is not working.
6- in this product found only one camera. Back side camera is not in this product. but product advertisement says this product has 2 cameras.
7- Wi-Fi singals quality is very poor.
8- The battery charger of this product (xelectron resistive SIM calling tablet WS777) has stopped work dated 12-01-2013 3p.m. 9- So this product is useless to me.
10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....

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