कविता :"आंबेडकर जयंती "
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*"आंबेडकर जयंती "*
जिस जगह से मैं गुजरूं ,
वह जगह अपवित्र हो जाता |
जिस कुंआ का पानी मैं पिया ,
वह कुंआ का पानी अपवित्र हो जाता |
हर कदम और हर जगह पर ,
छु...
12 hours ago
11 comments:
बोगस वोटिंग हो रही, वेटिंग इक सप्ताह ।
चौदह जन तैयार मन, आह वाह हो स्वाह ।
आह वाह हो स्वाह, हवा बहती बासंती ।
आज बढ़ी उम्मीद, छाप दी एक तुरंती ।
लेकिन रविकर खिन्न, करे तन मन से फोकस ।
फल ना पाए भिन्न, होय बैलट ही बोगस ।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (9-2-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!
बहुत बढिया है सर जी......आभार
sundar prastuti,aadhunik vicharo se otprot,
:))).... बढ़िया...
~सादर!!!
बढिया
बढिया
बढिया
बहुत सुन्दर व् भावात्मक प्रस्तुति .सराहनीय अभिव्यक्ति ये क्या कर रहे हैं दामिनी के पिता जी ? आप भी जाने अफ़रोज़ ,कसाब-कॉंग्रेस के गले की फांस
waah guru ji salute to u
बहुत बढिया व् भावात्मक प्रस्तुति
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