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ग़ज़ल "जमाखोरों का वतन में राज आया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

Sunday, November 22, 2015

जलाया खून है अपना, पसीना भी बहाया है।
कृषक ने अन्न खेतों में, परिश्रम से कमाया है।।

सुलगते जिसके दम से हैं, घरों में शान से चूल्हे,
उसी पालक को, साहूकार ने भिक्षुक बनाया है।

मुखौटा पहनकर बैठे हैं, ढोंगी आज आसन पर,
जिन्होंने कंकरीटों का, यहाँ जंगल उगाया है।

कहें अब दास्तां किससे, अमानत में ख़यानत है,
जमाखोरों का अब अपने, वतन में राज आया है।

पहन खादी की केंचुलिया, छिपाया रूप को अपने,
रिज़क इस देश का खाकर, विदेशी गान गाया है।

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'झरी नीम की पत्तियाँ' का विमोचन (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

Sunday, September 20, 2015

19 सितम्बर, 2015 को
मेरे अभिन्न मित्र स्व. देवदत्त 'प्रसून' की
प्रथम काव्यकृति
'झरी नीम की पत्तियाँ'
का विमोचन पीलीभीत में हुआ।
इस अवसर पर मैंने अपने मित्र को 
निम्न  दोहों के साथ श्रद्धासुमन अर्पित किये।
--
चार दशक तक रहा था, साथ आपका मित्र।
लेकिन अब तो रह गया, मात्र आपका चित्र।।
--
लेखन-वाचन का रहा, मन में सदा जुनून।
स्वाभिमान के साथ में, जिन्दा रहा प्रसून।।
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देवदत्त ने समय से, कभी न मानी हार।
अन्त समय तक सभी को, रहा बाँटते प्यार।।
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देह भले ही हो गयी, चिर निद्रा में लीन।
काव्य क्षितिज पर कभी तुम, होंगे नहीं विलीन।।
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शिक्षक-साधक बन किया, हरदम बुद्धिविलास।
जीवनभर धन के कभी, नहीं बन सके दास।।
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बदलेगा साहित्य से, दुनिया का परिवेश।
झरी नीम की पत्तियाँ, देगीं शुभ सन्देश।।
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अजर-अमर है आत्मा, पावन और पवित्र।
भाव भरे श्रद्धासुमन, अर्पित तुमको मित्र।।

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कविगोष्ठी"स्व. टीकाराम पाण्डेय 'एकाकी' की दूसरी पुण्यतिथि"

Tuesday, September 1, 2015


जीवन भर जिसने कभी, किया नहीं विश्राम।
धन्य हिन्द के केशरी, पंडित टीकाराम।।
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दीन-दुखी के लिए जो, सदा रहे थे नाथ।
जीवन सैनिक सा जिया, कर्तव्यों के साथ।।
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खुश रहते हर हाल में, रहे न कभी उदास।
कोकिल जैसे कण्ठ में, रहती मधुर-मिठास।।
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शब्दों में जिनके सदा, रहता था लालित्य।
'एकाकी' उपनाम से, लिखा सरल साहित्य।।
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अपने श्रद्धा के सुमन, करूँ समर्पित आज।
कैसे भूलेगा तुम्हें, अपना विज्ञ समाज।।
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देवभूमि में हो गया, अमर आपका नाम।
मानवता के दूत को, शत्-शत् हैं प्रणाम।
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कल 31 अगस्त को बनबसा (चम्पावत) के मेरे 40 साल पुराने कविमित्र स्व. टीकाराम पाण्डेय 'एकाकी' की दूसरी पुण्यतिथि थी। इस अवसर पर उनके पुत्र रवीन्द्र 'पपीहा' ने ग्लोरियस एकेडमी, बनबसा में एक कविगोष्ठी का आयोजन किया। जिसमें सरस्वती वन्दना रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" ने प्रस्तुत की।
क्षेत्र के जाने-माने कवियों ने भी गोष्ठी में अपना काव्य पाठ किया और स्व. टीकाराम पाण्डेय को अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित किये।
काव्य पाठ करने वालों में दीपक फुलेरा, अबसार अहमद सिद्दीकी, हामिद हुसैन "हामिद", हाजी एम. इलियास सिद्दीकी, डॉ. सिद्धेश्वर सिंह, डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय "नन्द", डॉ. राजकिशोर सक्सेना "राज", डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक", गुरू सहाय भटनागर "बदनाम" तथा स्थानीय कविगण तथा ग्लोरियस एकेडमी, बनबसा के छात्र और छात्राएँ थीं। गोष्ठी का संचालन रवीन्द्र पाण्डेय "पपीहा ताथ अध्यक्षता राष्ट्रपति सम्मान से अलंकृत पूर्व प्रधानाचार्य बंशीधर उपाध्याय ने की।
देखिए मेरे द्वारा छायांकन किये गये कुछ चित्र!



















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गीत "आशाएँ विश्वास जगाती" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

Saturday, August 1, 2015

आशा पर ही प्यार टिका है
आशा पर संसार टिका है।।

आशाएँ ही वृक्ष लगाती,
आशाएँ विश्वास जगाती,
आशा पर परिवार टिका है।
आशा पर संसार टिका है।।

आशाएँ श्रमदान कराती,
पत्थर को भगवान बनाती,
आशा पर उपकार टिका है।
आशा पर संसार टिका है।।

आशा यमुनाआशा गंगा,
आशाओं से चोला चंगा,
आशा पर उद्धार टिका है।
आशा पर ही प्यार टिका है।।

आशाओं में बल ही बल है,
इनसे जीवन में हलचल है.
खान-पान आहार टिका है।
आशा पर संसार टिका है।।

आशाएँ हैंतो सपने है,
सपनों में बसते अपने हैं,
आशा पर व्यवहार टिका है।
आशा पर संसार टिका है।।

आशाओं के "रूप" बहुत हैं,
शीतल छाया धूप बहुत है,
प्रीत-रीत-मनुहार टिका है।
आशा पर संसार टिका है।।

आशाएँ जब उठ जायेंगी,
दुनियादारी लुट जायेंगी,
उड़नखटोला द्वार टिका है।
आशा पर संसार टिका है।।

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‘‘धैर्य में ही सुख है’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

Friday, May 29, 2015

‘‘रोटी की कहानी’’ 
   एक राजकुमारी थी। वह रोटी खाने बैठी। रोटी गरम थी राजकुमारी का हाथ जल गया आर वह रोने लगी।

    तब रोटी ने कहा- ‘‘बहिन! तुम तो बहुत कमजोर दिल की हो। जरा सी भाप लगने पर ही रोने लगी।’’
   ‘‘सुनो! अब मैं तमको अपनी कहानी सुनाती हूँ।’’
मैं धरती की बेटी हूँ। किसान ने मेरा लालन-पालन किया है। सबसे पहले किसान हल जोत कर मिट्टी को भुर-भुरा करता है।
     फिर मुझे मिट्टी में दफ्न कर देता है, परन्तु मैं धेर्यपूर्वक सब सहन कर लेती हूँ। अब मुझमें नये फल आ जाते हैं ।
      पक जाने मेरे पौधे को मशीन में डाल कर कुचला जाता है और गेहूँ के रूप में बोरों मे भर कर बाजार में बेच दिया जाता है।
    फिर आप लोग उस गेंहूँ को अपने घर लाकर चक्की में पिसवाते हैं। मैं अब भी नही रोती हूँ और धैर्य बनाये रखती हूँ।
    इस आटे को तुम्हारी माता जी पानी डाल कर गूँथती हैं। उनके मुक्कों के प्रहार को भी मैं धैर्य के साथ सहन कर लेती हूँ।
     हद तो जब हो जाती है कि मुझे बेलन चला कर गोल रूप दे दिया जाता है और गर्म तवे पर डाल दिया जाता है।
     इसके बाद मुझे आग पर सेंका जाता हैं। परन्तु मैं कभी उफ तक नही करती हूँ।
इसीलिए मैं कहती हूँ कि बहिन! धैर्य में ही सुख है।
     यदि मैं धैर्य न रखूँ तो संसार भूखो मर जायेगा।
बस यही है मेरी आत्म-कथा। 

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"काव्य की आत्मा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)

Friday, March 13, 2015

♥ रस काव्य की आत्मा है ♥
सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि रस क्या होता है?
कविता पढ़ने या नाटक देखने पर पाठक या दर्शक को जो आनन्द मिलता है उसे रस कहते हैं।
आचार्यों ने रस को काव्य की आत्मा की संज्ञा दी है।
रस के चार अंग होते हैं। 
1- स्थायी भाव,
2- विभाव,
3- अनुभाव और
4- संचारी भाव
सहृदय व्यक्ति के हृदय में जो भाव स्थायी रूप से विद्यमान रहते हैं, उन्हें स्थायी भाव कहा जाता है। यही भाव रस का बोध पाठक को कराते हैं।
काव्य के प्राचीन आचार्यों ने स्थायी भाव की संख्या नौ निर्धारित की थी, जिसके आधार पर रसों की संख्या भी नौ ही मानी गई थी।
स्थायी भाव                    रस
रति                                           शृंगार
हास                                           हास्य
शोक                                          करुण
क्रोध                                          रौद्र
उत्साह                                      वीर
भय                                           भयानक
जुगुप्सा (घृणा)                         वीभत्स
विस्मय                                    अद्भुत
निर्वेद                                       शान्त
लेकिन अर्वाचीन विद्वानों ने वात्सल्य के नाम से दसवाँ रस भी स्वीकार कर लिया। किन्तु इसका भी स्थायी भाव रति ही है। अन्तर इतना है कि जब रति बालक के प्रति उत्पन्न होती है तो उससे वात्सल्य की और जब ईश्वर के प्रति होती है तो उससे भक्ति रस की निष्पत्ति होती है।
विभाव
जिसके कारण सहृदय व्यक्ति को रस प्राप्त होता है , वह विभाव कहलाता है। अतः स्थायी भाव का कारण विभाव है। यह दो प्रकार का होता है-
क- आलम्बन विभाव
ख- उद्दीपन विभाव
(I) आलम्बन विभाव
वह कारण जिस पर भान अवलम्बित रहता है- अर्थात् जिस व्यक्ति या वस्तु के प्रति मन में रति आदि स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं, उसे आलम्बन कहते हैं तता जिस व्यक्ति के मन में स्थायी भाव  उत्पन्न होते हैं उसे आश्रय कहते हैं। उदाहरण के लिए पुत्र की मृत्यु पर विलाप करती हुई माता। इसमें माता आश्रय है और पुत्र आलम्बन है। अतः यहाँ स्थायी भाव शोक है जिससे करुणरस की उत्पत्ति होती है। 
(II) उद्दीपन विभाव
जो आलम्बन द्वारा उत्पन्न भावों को उद्दीप्त करते हैं, वे उद्दीपन विभाव कहलाते हैं। जैसे- जंगल में  सिंह का गर्जन। इससे भय का स्थायी भाव उद्दीप्त होता है और सिंह का खुला मुख जंगल की भयानकता आदि का उद्दीपन विभाव है। इससे भयानक रस की उत्पत्ति होती है।
अनुभाव
स्थायी भाव के जाग्रत होने पर आश्रय की वाह्य चेष्टाओं को अवुबाव कहा जाता है। जैसे- भय उत्पन्न होने पर हक्का-बक्का हो जाना, रोंगटे खड़े हो जाना, काँपना, पसीने से तर हो जाना आदि।
यदि बिना किसी भावोद्रेक के मात्र भौतिक परिस्थिति के कारण अगर ये चेष्टाएँ दिखाई पड़ती हैं तो उन्हें अनुभाव नहीं कहा जाएगा। जैसे - जाड़े के कारण काँपना या गर्मी के कारण पसीना निकलना आदि।
संचारी भाव
आश्रय के मन में उठने वाले अस्थिर मनोविकारों को संचारी भाव कहते हैं। ये मनोविकार पानी के बुलबुले की भाँति बनते और मिटते रहते हैं, जबकि स्थायी भाव अन्त तक बने रहते हैं।
यहाँ यह भी उल्लेख करना आवश्यक है कि प्रत्येक रस का स्थायी भाव  तो निश्चित है परन्तु एक ही संचारी अनेक रसों में हो सकता है। जैसे - शंका शृंगार रस में भी हो सकती है और भयानक रस में भी। यहाँ यह भी विचारणय है कि स्थायी भाव भी दूसरे रस में संचारी भाव हो जाते हैं। जैसे - हास्य रस का स्थायी भाव "हास" शृंगार रस में संचारी भाव बन जाता है। संचारी भाव को व्यभिचारी भाव के नाम से भी जाना जाता है।
रसों के बारे में अपनी अगली किसी पोस्ट में यहीं पर प्रकाश डालूँगा।
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"दोहे्-भेद-भाव को मेटता होली का त्यौहार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

Thursday, March 5, 2015

होली का त्यौहार
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फागुन में नीके लगें, छींटे औ' बौछार।
सुन्दर, सुखद-ललाम है, होली का त्यौहार।।

शीत विदा होने लगा, चली बसन्त बयार।
प्यार बाँटने आ गया, होली का त्यौहार।।

पाना चाहो मान तो, करो मधुर व्यवहार।
सीख सिखाता है यही, होली का त्यौहार।।

रंगों के इस पर्व का, यह ही है उपहार।
भेद-भाव को मेटता, होली का त्यौहार।।

तन-मन को निर्मल करे, रंग-बिरंगी धार।
लाया नव-उल्लास को, होली का त्यौहार।।

भंग न डालो रंग में, वृथा न ठानो रार।
देता है सन्देश यह, होली का त्यौहार।।

छोटी-मोटी बात पर, मत करना तकरार।
हँसी-ठिठोली से भरा, होली का त्यौहार।।

सरस्वती माँ की रहे, सब पर कृपा अपार।
हास्य-व्यंग्य अनुरक्त हो, होली का त्यौहार।।

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"लगता है बसन्त आया है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

Tuesday, January 20, 2015

 टेसू की डालियाँ फूलतीं, 
खेतों में बालियाँ झूलतीं, 
लगता है बसन्त आया है! 

केसर की क्यारियाँ महकतीं, 
बेरों की झाड़ियाँ चहकती, 
लगता है बसन्त आया है!

sun 
आम-नीम पर बौर छा रहा, 
प्रीत-रीत का दौर आ रहा, 
लगता है बसन्त आया है!

सूरज फिर से है मुस्काया , 
कोयलिया ने गान सुनाया, 
लगता है बसन्त आया है! 
जय हो जय, शिव-शंकर की जय!
शिव का है घर-घर में वन्दन, 
उपवन में छाया स्पन्दन, 
लगता है बसन्त आया है!
 

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नापतोल.कॉम से कोई सामान न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
1- Camera is not working.
2- U-Tube is not working.
3- Skype is not working.
4- Google Map is not working.
5- Navigation is not working.
6- in this product found only one camera. Back side camera is not in this product. but product advertisement says this product has 2 cameras.
7- Wi-Fi singals quality is very poor.
8- The battery charger of this product (xelectron resistive SIM calling tablet WS777) has stopped work dated 12-01-2013 3p.m. 9- So this product is useless to me.
10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....

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