जीवन भर जिसने कभी, किया नहीं विश्राम।
धन्य हिन्द के केशरी, पंडित टीकाराम।।
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दीन-दुखी के लिए जो, सदा रहे थे नाथ।
जीवन सैनिक सा जिया, कर्तव्यों के साथ।।
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खुश रहते हर हाल में, रहे न कभी उदास।
कोकिल जैसे कण्ठ में, रहती मधुर-मिठास।।
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शब्दों में जिनके सदा, रहता था लालित्य।
'एकाकी' उपनाम से, लिखा सरल साहित्य।।
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अपने श्रद्धा के सुमन, करूँ समर्पित आज।
कैसे भूलेगा तुम्हें, अपना विज्ञ समाज।।
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देवभूमि में हो गया, अमर आपका नाम।
मानवता के दूत को, शत्-शत् हैं प्रणाम।
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कल 31 अगस्त को बनबसा (चम्पावत) के मेरे 40 साल पुराने कविमित्र स्व. टीकाराम पाण्डेय 'एकाकी' की दूसरी पुण्यतिथि थी। इस अवसर पर उनके पुत्र रवीन्द्र 'पपीहा' ने ग्लोरियस एकेडमी, बनबसा में एक कविगोष्ठी का आयोजन किया। जिसमें सरस्वती वन्दना रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" ने प्रस्तुत की।
क्षेत्र के जाने-माने कवियों ने भी गोष्ठी में अपना काव्य पाठ किया और स्व. टीकाराम पाण्डेय को अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित किये।
काव्य पाठ करने वालों में दीपक फुलेरा, अबसार अहमद सिद्दीकी, हामिद हुसैन "हामिद", हाजी एम. इलियास सिद्दीकी, डॉ. सिद्धेश्वर सिंह, डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय "नन्द", डॉ. राजकिशोर सक्सेना "राज", डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक", गुरू सहाय भटनागर "बदनाम" तथा स्थानीय कविगण तथा ग्लोरियस एकेडमी, बनबसा के छात्र और छात्राएँ थीं। गोष्ठी का संचालन रवीन्द्र पाण्डेय "पपीहा ताथ अध्यक्षता राष्ट्रपति सम्मान से अलंकृत पूर्व प्रधानाचार्य बंशीधर उपाध्याय ने की।
देखिए मेरे द्वारा छायांकन किये गये कुछ चित्र!
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