कविता :"गुमसुम परिंदा "
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*"गुमसुम परिंदा "*
सोए हुए गुमसुम परिंदा,
अब जाग जाओ तुम|
देखो विपत्तियों का गठर लदा हुआ है,
हर एक उम्मीदों पर|
अब जरा एक झलक देख लो,
अपने अंदर की आत्मा को...
1 week ago
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