‘‘धैर्य में ही सुख है’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
Friday, May 29, 2015
‘‘रोटी की कहानी’’
एक राजकुमारी थी। वह रोटी
खाने बैठी। रोटी गरम थी राजकुमारी का हाथ जल गया आर वह रोने लगी।
तब रोटी ने कहा- ‘‘बहिन! तुम तो बहुत कमजोर दिल की हो। जरा सी भाप
लगने पर ही रोने लगी।’’
‘‘सुनो! अब मैं तमको अपनी कहानी सुनाती हूँ।’’
मैं धरती की बेटी हूँ। किसान ने मेरा लालन-पालन
किया है। सबसे पहले किसान हल जोत कर मिट्टी को भुर-भुरा करता है।
फिर मुझे मिट्टी में दफ्न कर देता है, परन्तु मैं धेर्यपूर्वक सब सहन कर लेती हूँ। अब
मुझमें नये फल आ जाते हैं ।
पक जाने मेरे पौधे को मशीन में डाल कर कुचला जाता
है और गेहूँ के रूप में बोरों मे भर कर बाजार में बेच दिया जाता है।
फिर आप लोग उस गेंहूँ को अपने घर लाकर चक्की में
पिसवाते हैं। मैं अब भी नही रोती हूँ और धैर्य बनाये रखती हूँ।
इस आटे को तुम्हारी माता जी पानी डाल कर गूँथती
हैं। उनके मुक्कों के प्रहार को भी मैं धैर्य के साथ सहन कर लेती हूँ।
हद तो जब हो जाती है कि मुझे बेलन चला कर गोल रूप
दे दिया जाता है और गर्म तवे पर डाल दिया जाता है।
इसके बाद मुझे आग पर सेंका जाता हैं। परन्तु मैं
कभी उफ तक नही करती हूँ।
इसीलिए मैं कहती हूँ कि बहिन! धैर्य में ही सुख है।
यदि मैं धैर्य न रखूँ तो संसार भूखो मर जायेगा।
बस यही है मेरी आत्म-कथा।
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