'झरी नीम की पत्तियाँ' का विमोचन (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
Sunday, September 20, 2015
19 सितम्बर, 2015 को
मेरे अभिन्न मित्र स्व. देवदत्त 'प्रसून' की
प्रथम काव्यकृति
'झरी नीम की पत्तियाँ'
का विमोचन पीलीभीत में हुआ।
इस अवसर पर मैंने अपने मित्र को
निम्न दोहों के साथ श्रद्धासुमन अर्पित किये। -- चार दशक तक रहा था, साथ आपका मित्र।
लेकिन अब तो रह गया, मात्र आपका चित्र।।
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लेखन-वाचन का रहा, मन में सदा जुनून।
स्वाभिमान के साथ में, जिन्दा रहा प्रसून।।
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देवदत्त ने समय से, कभी न मानी हार।
अन्त समय तक सभी को, रहा बाँटते प्यार।।
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देह भले ही हो गयी, चिर निद्रा में लीन।
काव्य क्षितिज पर कभी तुम, होंगे नहीं विलीन।।
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शिक्षक-साधक बन किया, हरदम बुद्धिविलास।
जीवनभर धन के कभी, नहीं बन सके दास।।
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बदलेगा साहित्य से, दुनिया का परिवेश।
झरी नीम की पत्तियाँ, देगीं शुभ सन्देश।।
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अजर-अमर है आत्मा, पावन और पवित्र।
भाव भरे श्रद्धासुमन, अर्पित तुमको मित्र।।
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