"एक होली ऐसी भी..." (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Thursday, March 21, 2013
गलतफहमी-"एक होली ऐसी भी..."
मेरे छोटे भाई बरेली के किसी चिकित्सालय में पशुचिकित्सा अधिकारी हैं। वह सपरिवार होली पर मेरे घर आये हुए थे।
कुछ दिन पूर्व उनकी छोटी बेटी को बन्दर ने काट लिया था।
नियमित अन्तराल पर उसको एण्टी रेबीज इंजक्शन लगना था।
उस समय मैंने तीन कुत्ते पाल रखे हैं। उनमें एक अभी छोटा ही था। उसे भी छोटू ही कहते थे। अचानक मेरे डाक्टर भाई ने कहा कि भइया छोटू को एण्टी-रेबीज का इंजक्शन लगाना है।
मैंने सोचा कि छोटा भाई पशु चिकित्सक है इसलिए मेरे छोटू कुत्ते के लिए एण्टी-रेबीज का टीका लाया होगा। अतः मैं छोटू कुत्ते को पकड़ लाया और भाई से कहा कि इंजक्शन भर कर तैयार कर लो।
उसने भी सोचा कि भैया कुत्ते से खेल रहे होंगे। वह इंजक्शन भर कर ले आया और कहने लगा - भैया थोड़ी रूई और स्प्रिट दे दो।
मैने कहा कि स्प्रिट की क्या जरूरत है। वह संकोच में कुछ नही बोला। मैंने फिर कहा कि इंजक्शन कुत्ते को ही तो लगाना है। स्प्रिट की क्या जरूरत है।
अब उसके चौंकने की बारी थी। वह बहुत जोर से हँसा।
मैंने कहा कि इसमें इतना हँस क्यों रहे हो। अब उसकी पत्नी भी हँसने लगी। जब भेद खुला तो पता लगा कि इंजक्शन तो उनकी छोटी बेटी पल्लवी को लगना है। जिसे वो प्यार से छोटू कहते थे।
इस गलत फहमी को हर वर्ष होली पर याद कर लेते हैं
और ठहाके लगा लेते हैं।