"ग़ज़ल-सावन की छटा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Wednesday, July 2, 2014
सावन की है छटा निराली
धरती पर पसरी हरियाली
तन-मन सबका मोह रही है
नभ पर घटा घिरी है काली
मोर-मोरनी ने कानन में
नृत्य दिखाकर खुशी मना ली
सड़कों पर काँवड़ियों की भी
घूम रहीं टोली मतवाली
झूम-झूम लहराते पौधे
धानों पर छायीं हैं बाली
दाड़िम, सेब-नाशपाती के,
चेहरे पर छायी है लाली
लेकिन ऐसे में विरहिन का
उर-मन्दिर है खाली-खाली
प्रजातन्त्र के लोभी भँवरे
उपवन में खा रहे दलाली
कैसे निखरे "रूप" गुलों का
करते हैं मक्कारी माली
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1 comments:
कैसे निखरे "रूप" गुलों का
करते हैं मक्कारी माली ..sundar
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