आज से लगभग 30 साल पुरानी बात है। तब मैं खटीमा से 15 किमी दूर बनबसा में रहता था। उन दिनों मेरी मित्रता सेना से अवकाश प्राप्त ब्रिगेडियर गौविन्द सिंह रौतेला से हो गई थी। जो निहायत इंसाफपसंद और खरी बात कहने वाले व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे।
एक दिन मैं अपने क्लीनिक से दोपहर के भोजन के लिए जा रहा था कि रास्ते में ब्रिगेडियर साहब भी मिल गये। हम दोनों लोग बातें करते हुए जा रहे थे तभी हमने देखा कि एक दुकानदार और उसका लड़का झगड़ा कर रहे थे। बेटा पिता को मार रहा था और लोग तमाशा देख रहे थे। तभी ब्रिगेडियर साहब ने मेरा साथ छोड़कर दुकानदार के लड़के को पकड़ा और जम कर उसकी मार लगा दी। साथ ही यह हिदायत भी दे दी कि अगर भविष्य में ऐसा किया तो जेल के सींखचों के भीतर तुमको करा दूँगा। पैंसठ साल की उमर में ऐसा जज़्बा देखकर मैं भी दंग रह गया।
रौतेला जी का देहावसान लगभग 95 साल की आयु में हुआ है मगर मैंने उन्हें अन्त तक कभी खेतों में ट्रैक्टर चलाते हुए और कभी अपनी जिप्सी या जीप पर बाजार-हाट के काम से जाते हुए ही पाया था।
इनके पास यूँ तो फार्म पर कई गाय भैंसे थी मगर एक गाय बहुत दुधारू थी। दुर्भाग्य से उसका एक थन खराब हो गया था। अतः तीन ही थनों में दूध आता था। एक दिन एक व्यापारी ने कहा कि ब्रिगेडियर साहब आप इसे बेच दीजिए। मैं अच्छे दाम दिला दूँगा।
इस पर ब्रिगेडियर साहब बोले कि मैं इसे किसी कीमत पर नहीं बेचूँगा। इसने हमारी बहुत सेवा की है। अतः हम भी अन्त तक इसकी सेवा करेंगे।
इधर मुझे कल ऐसा ही एक हृदय विदारक दृश्य देखने को मिला। मेरे पड़ोस में रहने वाले एक व्यक्ति की बकरी को फालिस मार गया था और वो खड़ी नहीं हो पा रही थी। उसे लेकर वह पशु चिकित्सालय गया तो डॉक्टर ने दो इंजक्शन लगा दिये और कहा कि इसका इलाज आपको कई दिनों तक कराना पड़ेगा।
तभी एक बकरकसाब जो उसके पीछे-पीछे लगा हुआ था उससे बोला कि यह अब ठीक होने वाली नहीं है। इसलिए आप लोग इसको मुझे बेच दीजिए। बकरकसाब की बात सुनकर बकरी के मालिक के मन में भी लालच आ गया और उसने 3000 रुपये की बकरी को 900 रुपये में बकरकसाब को बेच दिया।
उसकी यह मानसिकता देखकर मेरे मन में बहुत दुख हुआ और ग्लानि भी हुई और यह स्वाभाविक प्रश्न उठा कि मांसाहारी लोगों को क्या बाजार से अच्छा मांस खाने को मिलता है?
साथ ही मुझे यह भी आभास हुआ कि हर एक व्यक्ति ब्रिगेडियर गोविन्द सिंह रौतेला जैसा नहीं हो सकता है।
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