कविता :"गुमसुम परिंदा "
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*"गुमसुम परिंदा "*
सोए हुए गुमसुम परिंदा,
अब जाग जाओ तुम|
देखो विपत्तियों का गठर लदा हुआ है,
हर एक उम्मीदों पर|
अब जरा एक झलक देख लो,
अपने अंदर की आत्मा को...
1 week ago
कार हमारी हमको भाती।। हिन्दीदिन पर इसको लाये। हम सब मन में थे हर्षाये।। आज तीसरा जन्मदिवस है। लेकिन अब भी जस की तस है।। यह सफर की सखी-सहेली। अब भी है ये नयी-नवेली।। साफ-सफाई इसकी करते। इसका ध्यान हमेशा धरते।। सड़कों पर चलती मतवाली। कभी न धोखा देने वाली।। सदा सँवारो सबका जीवन। चाहे जड़ हो या हो चेतन।। पूरे घर को तुम हो भायी। जन्मदिवस पर तुम्हें बधायी।। |
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