कविता : "संघर्ष "
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* "संघर्ष "*
देखो है हजारों की संघर्ष,
जब नहीं थी चीजे उपलब्ध |
लोगो में थे आपसी संबंध,
न थी एक-दूसरे के प्रति घमंड |
उम्मीदों की छाया बनते थे वह सब,
मुशीब...
4 hours ago
कार हमारी हमको भाती।। हिन्दीदिन पर इसको लाये। हम सब मन में थे हर्षाये।। आज तीसरा जन्मदिवस है। लेकिन अब भी जस की तस है।। यह सफर की सखी-सहेली। अब भी है ये नयी-नवेली।। साफ-सफाई इसकी करते। इसका ध्यान हमेशा धरते।। सड़कों पर चलती मतवाली। कभी न धोखा देने वाली।। सदा सँवारो सबका जीवन। चाहे जड़ हो या हो चेतन।। पूरे घर को तुम हो भायी। जन्मदिवस पर तुम्हें बधायी।। |
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