"जिन्दादिली का प्रमाण दो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
Sunday, April 6, 2014
जिन्दा हो गर, तो जिन्दादिली का प्रमाण दो। मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो।। स्वाधीनता का पाठ पढ़ाया है राम ने, क्यों गिड़िगिड़ा रहे हो शत्रुओं के सामने, अपमान करने वालों को हरगिज न मान दो। मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो।। तन्द्रा में क्यों पड़े हो, हिन्द के निवासियों, सहने का वक्त अब नही, भारत के वासियों, सौदागरों की बात पर बिल्कुल न ध्यान दो। मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो।। कश्मीर का भू-भाग दुश्मनों से छीन लो, कैलाश-मानसर को भी अपने अधीन लो, चीन-पाक को नही रज-कण का दान दो। मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो।। |