“पथ निखर ही जाएगा” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Saturday, July 26, 2014
आज अपना हम सँवारें, कल सँवर ही जायेगा
आप सुधरोगे तो सारा, जग सुधर ही जाएगा
जो अभी कुछ घट रहा है, वही तो इतिहास है
देखकर नक्श-ए-कदम को, रथ उधर ही जाएगा
रास्ते कितने मिलेंगे, सोचकर पग को बढ़ाना
आओ मिलकर पथ बुहारें, पथ निखर ही जाएगा
एकता और भाईचारे में, दरारें मत करो
वरना ये गुलदान पल भर में, बिखर ही जाएगा
चमन में फूलों का सबको “रूप” भाता है बहुत
गर मिलेगी गन्ध तो, भँवरा पसर ही जाएगा
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