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कविता और संस्मरण’ "चन्दा देता है विश्राम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

Tuesday, March 17, 2020

‘चन्दा और सूरज’’
चन्दा में चाहे कितने हीधब्बे काले-काले हों।
सूरज में चाहे कितने हीसुख के भरे उजाले हों।

लेकिन वो चन्दा जैसी शीतलता नही दे पायेगा।
अन्तर के अनुभावों मेंकोमलता नही दे पायेगा।।

सूरज में है तपनचाँद में ठण्डक चन्दन जैसी है।
प्रेम-प्रीत के सम्वादों कीगुंजन वन्दन जैसी है।।

सूरज छा जाने पर पक्षीनीड़ छोड़ उड़ जाते हैं।
चन्दा के आने परफिर अपने घर वापिस आते हैं।।

सूरज सिर्फ काम देता हैचन्दा देता है विश्राम।
तन और मन को निशा-काल मेंमिलता है पूरा आराम।।
--
संस्मरण
     लगभग 13 वर्ष पूर्व की बात है। उन दिनों मैं उत्तराखण्ड सरकार में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य था।
     मेरे साथ एक सज्जन आयोग में अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए जा रहे थे। गर्मी का मौसम था इसलिए रोडवेज बस की रात्रि-सेवा से जाने का कार्यक्रम बनाया गया। रुद्रपुर से हमें देहरादून के लिए एसी बस पकड़नी थी।
    खटीमा से रात्रि बजे चलकर 10 बजे रुद्रपुर पहुँचे। बस के आने में एक घण्टे का विलम्ब था। सोचा खाना ही खा लिया जाये। हम दोनों खाने खाने लगे।
    हमारे पास ही एक व्यक्ति जो पुलिस की वर्दी पहने था। आकर बैठ गया।
    हमने उससे कहा कि भाई! हमें खाना खा लेने दो।
हमने खाना खा लियालेकिन पराँठे बच गये।
    मैं इन्हें किसी माँगने वाले या गैया को देने ही जा रहा था कि वो बोला- ‘‘साहब ये पराँठे मुझे दे दीजिए। मैं सुबह से भूखा हूँ।’’
    मैंने कहा- ‘‘पुलिस वाले होकर भूखे क्यों हो।’’
    वह बोला- ‘‘साहब! मेरी जेब कट गयी है।’’
    मैंने अब उससे विस्तार से पूछा और कहा कि पुलिस कोतवाली में जाकर कुछ खर्चा क्यों नही ले लेते?
    वह बोला- ‘‘साहब! वहाँ तो मुझे बहुत झाड़-लताड़ खानी पड़ेगी। इससे तो अच्छा है कि किसी कण्डक्टर की सिफारिश करके बस में बैठ जाऊँगा।’’
    बातों बातों में मुझे पता चला कि यह सिपाही तो खटीमा थाने में ही तैनात है। मैंने उसे पचास रुपये बतौर किराये भी दे दिये। जो उसने खटीमा आने पर मुझे चार-पाँच दिन बाद लौटा दिये थे।
मुझे उस दिन आभास हुआ कि भूख क्या होती है।
    एक ब्राह्मण कुल में जन्मा व्यक्ति भूख में जूठे पराँठे और सब्जी खाने को भी मजबूर हो जाता है।

30 comments:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

भूख तो इंसान को नराधम बना बड़े से बड़ा पाप करवा देती है

Meena Bhardwaj said...

सत्य कथन सर ! भूख होती ही ऐसी है कि इन्सान संकोच,भला-बुरा भूल जाता है ।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.3.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3645 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।

धन्यवाद

दिलबागसिंह विर्क

Rohitas Ghorela said...

भूख जाती नहीं देखती।
केवल सोच ही जाती पूछती है... इसके अलावा एक भी उदहारण नहीं है जो जाती पूछती हो और इसके आधार पर भेदभाव करती हो।
चन्दा व सूरज दो अलग अलग चीजें है और दोनों का अपना अपना काम है। इनकी आपस में तुलना बईमानी है।
खैर
चन्दा जो है वो भी सूरज से ही रोशन है।
🙏😁.
नई रचना सर्वोपरि?

Sawai Singh Rajpurohit said...

भूख होती ही ऐसी है साहब
आज दुनिया में जो कुछ है वह सिर्फ इस पापी पेट के लिए ही करना पड़ता है
कहते हैं ऊपर वाला भूखा उठाता है पर सुलाता नहीं

Ravindra Singh Yadav said...

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (13-04-2020) को 'नभ डेरा कोजागर का' (चर्चा अंक 3670) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव



Onkar said...

सही कहा

Sudha Devrani said...

सूरज चाँद का महत्व बताता लाजवाब सृजन साथ ही बहुत हृदयस्पर्शी संस्मरण....।
वाह!!!

मन की वीणा said...

सुंदर काव्य के साथ हृदय स्पर्शी सार्थक सच्ची घटना । मन में आदर और करूणा का संचार करती शानदार प्रस्तुति।

Alaknanda Singh said...

सूरज में है तपन, चाँद में ठण्डक चन्दन जैसी है।
प्रेम-प्रीत के सम्वादों की, गुंजन वन्दन जैसी है।।... बहुत खूब ... अद्भुत हैं ये पंक्त‍ियां शास्त्री जी

RAJU BATTI said...

nice one
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vicky said...

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हिमांशु पाण्‍डेय said...

भूख न देखें जूठी रोटी, नींद न देखें टूटी खाट।
पेट न हो तो भेंट न हो।
शानदार अभिव्यक्ति। सादर

Harash Mahajan said...

बहुत ही शानदार रचना ।

Rakesh said...

बहुत ही बढ़िया रचना

Madhulika Patel said...

आदरणीय सर प्रणाम, सच बात है भूख के सामने हर इंसान विवस हो जाता है बहुत अच्छाी पोस्ट है ।

सधु चन्द्र said...

सराहनीय अभिव्यक्ति

Umesh said...

wow apne bahut hi jada ache Quotes likhe

Sanjay Kumar Garg said...

Sahi baat he, bhukh insan ko kuch bhi kara sakti he, Saabhar

Manisha Goswami said...

Please see my poem on my blog please

Manisha Goswami said...

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अरविंद said...

वह क्या बात है। बहुत सुंदर लेख !
खाली जेब और खाली पेट इंसान को वो सबक सिखला देता है जो दुनिया की कोई किताब नही समझ सकती।

ABHINAV said...

Thanks for valuable post
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नापतोल.कॉम से कोई सामान न खरीदें।

मैंने Napptol.com को Order number- 5642977
order date- 23-12-1012 को xelectron resistive SIM calling tablet WS777 का आर्डर किया था। जिसकी डिलीवरी मुझे Delivery date- 11-01-2013 को प्राप्त हुई। इस टैब-पी.सी में मुझे निम्न कमियाँ मिली-
1- Camera is not working.
2- U-Tube is not working.
3- Skype is not working.
4- Google Map is not working.
5- Navigation is not working.
6- in this product found only one camera. Back side camera is not in this product. but product advertisement says this product has 2 cameras.
7- Wi-Fi singals quality is very poor.
8- The battery charger of this product (xelectron resistive SIM calling tablet WS777) has stopped work dated 12-01-2013 3p.m. 9- So this product is useless to me.
10- Napptol.com cheating me.
विनीत जी!!
आपने मेरी शिकायत पर करोई ध्यान नहीं दिया!
नापतोल के विश्वास पर मैंने यह टैबलेट पी.सी. आपके चैनल से खरीदा था!
मैंने इस पर एक आलेख अपने ब्लॉग "धरा के रंग" पर लगाया था!

"नापतोलडॉटकॉम से कोई सामान न खरीदें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

जिस पर मुझे कई कमेंट मिले हैं, जिनमें से एक यह भी है-
Sriprakash Dimri – (January 22, 2013 at 5:39 PM)

शास्त्री जी हमने भी धर्मपत्नी जी के चेतावनी देने के बाद भी
नापतोल डाट काम से कार के लिए वैक्यूम क्लीनर ऑनलाइन शापिंग से खरीदा ...
जो की कभी भी नहीं चला ....ईमेल से इनके फोरम में शिकायत करना के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला ..
.हंसी का पात्र बना ..अर्थ हानि के बाद भी आधुनिक नहीं आलसी कहलाया .....

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