"सरस्वती माता का करता वन्दन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Friday, December 28, 2012
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnHLsFPFMOJxVlGmavmqFjwVwDz149EhiSjGfc7ScWmGU0St8JWtcrqD5-f05QvvIVSULmOxr8eBPpD2ygzD3wWYed4an_p4t5Naji4xZD44wyewJiMn9hpFn4gbE89vi1puk-Fo8o1PLD/s400/saraswati.jpg)
नही जानता कैसे बन जाते हैं, मुझसे गीत-गजल।
जाने कब मन के नभ पर, छा जाते हैं गहरे बादल।।
ना कोई कापी या कागज, ना ही कलम चलाता हूँ।
खोल पेज-मेकर को, हिन्दी टंकण करता जाता हूँ।।
देख छटा बारिश की, अंगुलियाँ चलने लगतीं है।
कम्प्यूटर देखा तो उस पर, शब्द उगलने लगतीं हैं।।
नजर पड़ी टीवी पर तो, अपनी हरकत कर जातीं हैं।
चिड़िया का स्वर सुन कर, अपने करतब को दिखलातीं है।।
बस्ता और पेंसिल पर, उल्लू बन क्या-क्या रचतीं हैं।
सेल-फोन, तितली-रानी, इनके नयनों में सजतीं है।।
कौआ, भँवरा और पतंग भी इनको बहुत सुहाती हैं।
नेता जी की टोपी, श्यामल गैया, बहुत लुभाती है।।
सावन का झूला हो, चाहे होली की हों मस्त फुहारें।
जाने कैसे दिखलातीं ये, बाल-गीत के मस्त नजारे।।
मैं तो केवल जाल-जगत पर, इन्हें लगाता जाता हूँ।
क्या कुछ लिख मारा है, मुड़कर नही देख ये पाता हूँ।।
जिन देवी की कृपा हुई है, उनका करता हूँ वन्दन।
सरस्वती माता का करता, कोटि-कोटि हूँ अभिनन्दन।।
5 comments:
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (29-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुदिश बहुआयामी रचना,बहु अर्थों की बात |
भक्ति-भावना,व्यंग्य साथ में,मिलीजुली सौगात ||
बढिया ,
बहुत सुंदर
बहुत खूबसूरत रचना
माँ को कोटि-२ प्रणाम बेहद सुन्दर रचना रची है सर आपको बधाई
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