"आखिर अन्य धर्मों के लोग कहाँ जाएँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
Friday, May 27, 2011
मैंने मुशायरे सुने हैं!
बहुत अच्छा लगता है जब यह सुनता हूँ!
"सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा!"
क्या यह प्यारा देशभक्ति गीत किसी हिन्दू ने लिखा था?
क्या हिन्दुओं के अतिरिक्त अन्य धर्मों के लोगों का कोई और देश है?
क्या देश भक्ति का ज़ज़्बा केवल हिन्दुओं के ही मन में है?
ऐसे बहुत से प्रश्न मन में कौंधते हैं!
हम लोग ब्लॉगिंग करते हैं तो इन सब बातों को भूल जाते हैं!
इतनी सारी भूमिका बाँधने का मुझे कोई शौक नही चर्राया है!
मित्रों कल मैंने बच्चों के ब्लॉग नन्हें सुमन पर एक स्वागत गीत पोस्ट किया था!
जिस पर बहुत सी टिप्पणियाँ आई मगर इनमें एक टिप्पणी ऐसी भी थी
जिसने मुझे झकझोर कर रख दिया और यह टिप्पणी थी श्रीमान वेद व्यथित जी की!
देख लीजिए आप भी इस टिप्पणी को!
vedvyathit
ji han dusht ghotale baj v mkkar netaon ke liye hi to yh gaya jata hai jo school ki pryog shala se le kr mootraaly tk ka udghatn krte hain
बहुत अच्छा लगता है जब यह सुनता हूँ!
"सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा!"
क्या यह प्यारा देशभक्ति गीत किसी हिन्दू ने लिखा था?
क्या हिन्दुओं के अतिरिक्त अन्य धर्मों के लोगों का कोई और देश है?
क्या देश भक्ति का ज़ज़्बा केवल हिन्दुओं के ही मन में है?
ऐसे बहुत से प्रश्न मन में कौंधते हैं!
हम लोग ब्लॉगिंग करते हैं तो इन सब बातों को भूल जाते हैं!
इतनी सारी भूमिका बाँधने का मुझे कोई शौक नही चर्राया है!
मित्रों कल मैंने बच्चों के ब्लॉग नन्हें सुमन पर एक स्वागत गीत पोस्ट किया था!
"स्वागत गीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
>> 27 MAY, 2011
लगभग 26 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था।
यह मेरा सौभाग्य है कि उत्सवों में आज भी
क्षेत्र के विद्यालयों में इसको गाया जा रहा है!
यह मेरा सौभाग्य है कि उत्सवों में आज भी
क्षेत्र के विद्यालयों में इसको गाया जा रहा है!
स्वागतम आपका कर रहा हर सुमन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।
भक्त को मिल गये देव बिन जाप से,
धन्य शिक्षा-सदन हो गया आपसे,
आपके साथ आया सुगन्धित पवन।
आप आये यहाँ आपको शत नमन।।....
जिस पर बहुत सी टिप्पणियाँ आई मगर इनमें एक टिप्पणी ऐसी भी थी
जिसने मुझे झकझोर कर रख दिया और यह टिप्पणी थी श्रीमान वेद व्यथित जी की!
देख लीजिए आप भी इस टिप्पणी को!
vedvyathit
ji han dusht ghotale baj v mkkar netaon ke liye hi to yh gaya jata hai jo school ki pryog shala se le kr mootraaly tk ka udghatn krte hain
इसके उत्तर में मैंने प्रति टिप्पणियाँ यह की थीं
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) २७ मई २०११ १०:१५ अपराह्न
वेद व्यथित जी!
आपसे ऐसे घटिया कमेंट की आशा नही थी,
वो भी बच्चों के ब्लॉग पर!
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) २७ मई २०११ १०:२० अपराह्न
आज तक तो आप कभी इस ब्लॉग पर आये नहीं
और आये तो इस प्रकार के कमेंट की बानगी लेकर!
इसके बाद vedvyathit जी चैट पर दिखाई दिए!
देख लीजिए इनकी वार्ता का नमूना!
विवरण दिखाएँ १०:४० अपराह्न (8 घंटों पहले) |
विवरण दिखाएँ १०:३३ अपराह्न (5 मिनट पहले) |
१०:२१ अपराह्न मुझे: नमस्कार
vedvyathit: bndhuvr sadr prnam
bndhuvr sadr prnam
मुझे: आप तो जाने माने सहृदय साहित्यकार हैं
१०:२२ अपराह्न vedvyathit: yh aap ka bddpnhai main khan sahitykar hoon
मुझे: फिर बच्चों के ब्लॉग पर ऐसा घटिया कमेंट क्यों
vedvyathit: kya yh vasvikta nhi hai
१०:२३ अपराह्न मुझे: तो क्या स्वागत गान न गायें बच्चे! अतिथियों को जूते मारें क्या
vedvyathit: jaise narayn dtt tivari ji ka test hona hai aise hi to neta hai aur ye hi to krndhar hain
१०:२४ अपराह्न aaj atithi kaun hain aap ko bhi pta hai bchcho ko is se door kyon n rkha jaye
मुझे: आप तो दूध के धुले हुए होगे
अतिथि की परिभाषा तो आप जानते होंगे
vedvyathit: bchchon ka yh durpyog hai koi neta aaye bchcho ko khda kr dete hai swagt me aur prbndhk apne kam nikalte hain
१०:२६ अपराह्न मुझे: आप सब्यता के नाम पर क्या सिखाना चाहेंगे, बच्चों को
सभ्यता
१०:२७ अपराह्न हम तो आपका बहुत सम्मान करते थे, मगर पहली ही मुलाकात अच्ची नहीं रही
१०:२८ अपराह्न vedvyathit: yh kaun si nsbhyta hai ki bchhcon se gundon ka swagt krvao
मुझे: क्या सब गुमडे ही हैं
क्या सब गुण्डे ही हैं
१०:२९ अपराह्न vedvyathit: neta ka shiksha ke mndir me kya kam aap shastri ji hain purano me vrnn hai ki raja aashrm me ghusne pr apni svari bhi chhod deta tha aur paidl chl kr jata tha
pr swgt gan sb ke hote hain
१०:३० अपराह्न मुझे: मगर इस स्वागत गान में तो नेताओं का नाम भी नहीं है
vedvyathit: pr aap ka yh git asli free pr aaya hai n ki blog pr vhi se khula hai
१०:३१ अपराह्न aur bchhco ko is me kyon ghsita jye
१०:३२ अपराह्न मुझे: आपने असली फ्री पर कमेंट किया है या नन्हेसुमन बच्चों के ब्लॉग पर!
vedvyathit: kya aap vrtman dsha se prichit nhi hai aap ko to yh geet aise netaon ke swagt se vapis le lena chahiye kyon ki yh aap ke geet ki tauhin hai jo aise logo ke liye gya jaye
१०:३३ अपराह्न main asli f.. pr hi likhna char rha tha pr vhan khula nhi aur yh khul gya
मुझे: ठीक है! आप आप ही रहेंगे! मैं छोटी प्ज्ञा का हूँ!
vedvyathit: asli free pr bhut kuchh aa rha hai shyd vh bhi aap jroor pdh rhe honge
मुझे: आपका और मेरा क्या मुकाबला!
१०:३४ अपराह्न vedvyathit: bndhu vaicharik bhed ho skte hain pr aap mn bhed kyon kr rhe hain
१०:३५ अपराह्न kya vrtman me bhart ki dsha shochniy nhi hai kya hindoon ko hr trh se nicha nhi dikhaya ja rhja hai aap is pr bhi vichar prkt kren
मुझे: वैचारिक मतभेद पर बात करने के लिए ब्लॉग सही जगह नहीं है! मेरे मेल में लिखते इस बात को! तो मैं आपको कुछ नहीं कहता!
१०:३६ अपराह्न vedvyathit: aap ko sb kuchh khne ka adhikar hai aap aayu me bde hain aadrniy hain
मुझे: मैं जाति धर्म पर बात नहीं करना चाहता हूँ! अन्य धर्मों के लोग आखिर भारत से जाएँगे कहाँ!
१०:३७ अपराह्न vedvyathit: kya bki log kr skte hain ek hindoo nhi kr skta kyon
shrm aati hai kya
मुझे: शुभरात्रि! मान्यवर!
vedvyathit: bhut 2 sadr prnam
यदि इस श्रेणी के साहित्यकार अपना साहित्य देंगे तो क्या भारत की अखण्डता अक्षुण्ण रह पाएगी?मैं कठोर शब्दों में इस प्रकार की संकुचित सोच रखने वाले लोगों की भर्त्सना करता हूँ! चाहे वे कितने भी महान साहित्यकार क्यों न हों!
यदि इस श्रेणी के साहित्यकार अपना साहित्य देंगे तो क्या भारत की अखण्डता अक्षुण्ण रह पाएगी?मैं कठोर शब्दों में इस प्रकार की संकुचित सोच रखने वाले लोगों की भर्त्सना करता हूँ! चाहे वे कितने भी महान साहित्यकार क्यों न हों!
13 comments:
MAANYAVAR ,
kshma chahti hoon kuchh technical problem ki wajah se hindi men nahin likh paa rahi hoon
main aap ki baaton se poorntaya sahmat hoon ,,,aap ke vichaar aap ke prati aadar ko aur badhate hain ,,,
sahitykar ka kartavya hai ki wo apni rachnaon ke dwara logon ko jodne ka kam kare n ki todne ka ,,,
vyathit ji ne to sach men vyathit kar diya ,,charcha apni raah se hat kar hindu-ahindu tak kaise aa gaee ??
bachchon ke blog par aise shabdon ka istemal kya unhen sahi lagta hai ?
"ham nai nasl ko de paaen to ho farz ada
jo ki ajdad ne saunpi thi virasat ham ko "
kya hamare buzurgon ne ye virasat saunpi thi hamen ??
aap kaa geet bahut sundar hai badhaai sweekar karen
दुर्भाग्यपूर्ण।
---------
हंसते रहो भाई, हंसाने वाला आ गया।
अब क्या दोगे प्यार की परिभाषा?
अति दुर्भाग्यपूर्ण।
एसी स्थिती तो आनी ही नही चाहिये थी आप को तत्काल कमेंट हटा देना था । कुच दोष हमारे नेताओ का भी है आज से २६ साल पहले आपने जिन नेताओ के लिये यह गीत बनाया था अब वो रहे ही नही और जो वेदो से ही व्यथित हो उनसे क्या चर्चा करनी मेरे ब्लाग मे आकर मुझे दुष्ट कह गये मैने भी कमेंट हटाया नही है लोग पढ़ेंगे तो थोड़ा मनोरंजन हो जायेगा
आदरणीय रूपचंद्र जी,
मेल पढ़ी. कोई शिक्षित इंसान इस तरह साम्प्रदायिकता की बात करता है ऐसे में उसे क्या कहा जाए? मैं नहीं जानती कि ये 'वेद व्यथित' जी कौन हैं, पर आपसे उनका वार्तालाप पढ़कर निश्चित हीं उनकी बुद्धि पर तरस आता है. ये तथाकथित हिन्दू ''हिन्दू'' किसे कहते ये भी नहीं जानते. अफ़सोस होता है इन लोगों की मानसिकता पर. जहां तक नेताओं की बात है तो हमारे शिक्षण संस्थान में जब वो पधारते हैं तो वो अतिथि होते हैं, न की सिर्फ एक नेता, ऐसे में स्वागत गान तो होना उचित हीं है, भले हीं वो कितने भी भ्रष्ट नेता क्यों न हो. यह एक अलग विषय है कि ऐसे भ्रष्ट नेता कैसे बने या क्यों है या बुलाये क्यों गए. हमारी भारतीय परंपरा में अतिथि का सम्मान किया जाता है चाहे वो जो कोई हो. आपका स्वागत गान बहुत हीं सुन्दर है.
ऐसे लोगों की प्रतिक्रिया को हटा देना उचित है.
सादर
जेन्नी
भाषा गत गरिमा तो हर प्रहर हर घडी हर जगह ज़रूरी है .वही व्यक्ति का असली परिचय है पद प्रतिष्ठा चेहरा मोहरा नहीं असली अलंकरण भाषिक ही होता है ।
इसीलिए तो उक्ति है -
ऐसी बाणी बोली मन का आपा खोय ,औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय .
भाषा गत गरिमा तो हर प्रहर हर घडी हर जगह ज़रूरी है .वही व्यक्ति का असली परिचय है पद प्रतिष्ठा चेहरा मोहरा नहीं असली अलंकरण भाषिक ही होता है ।
इसीलिए तो उक्ति है -
ऐसी बाणी बोली मन का आपा खोय ,औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय .
तुलसी बुरा न मानिए जो गंवार कह जाए .....
जो तोकू काँटा बुवे, वाही को बॉय तू फूल ,
तो कू फूल के फूल हैं ,वा कू हैं तिरशूल ।
दुनिया में किस्म किस्म के जीव हैं ,होमो -सेपियंस में भी कम विविधता नहीं है .कुछ का जैविक विकास हो चुका है कुछ अभी विकास की आदिम अवस्था में हैं .प्रजातंत्र का यही तो फायदा है सबको ढोता है सबसे उघाई करता है .अपने मानवाधिकार वादी भी ऐसे ही हैं इनकी नज़र में दहशत गर्दों के भी मानवाधिकार हैं .बलात -कारियों के भी और कुछ लोग तो शब्दों से ही काम कर जातें हैं बलात्कार का .(ज़ारी ..)
बहुत ही अच्छी कविता है. आप भी न कमाल लिखते हैं.
हीरा हैं आप. :D
लोगों ने तो सीता को भी नहीं छोड़ा, क्या फर्क पड़ता है,
आपका गीत बहुत सुन्दर है!
सादर-
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत दुख हुआ....
sir, waise to 1,2 log nikal hi jate hain jo apni budhi ka pryog har jagah karna chate hain . chahe wo sthali bacchon se sambndhit ho ya samprdayikta ka jati pati ka .... aapse ab hi jud payi hun jyada aapki rachna bhi padhi sasskt lekhni hai aapki .......... naman
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