"लीची होती बहुत रसीली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Saturday, May 25, 2013
हरी, लाल और पीली-पीली!
लीची होती बहुत रसीली!!
गायब बाजारों से केले।
सजे हुए लीची के ठेले।।
आम और लीची का उदगम।
मनभावन दोनों का संगम।।
लीची के गुच्छे हैं सुन्दर।
मीठा रस लीची के अन्दर।।
गुच्छा प्राची के मन भाया!
उसने उसको झट कब्जाया!!
लीची को पकड़ा, दिखलाया!
भइया को उसने ललचाया!!
प्रांजल के भी मन में आया!
सोचा इसको जाए खाया!!
गरमी का मौसम आया है!
लीची के गुच्छे लाया है!!
दोनों ने गुच्छे लहराए!
लीची के गुच्छे मन भाए!!
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14 comments:
गाँव जाते समय रामनगर में गर्मियों में खूब लीची मिलती हैं ....लीची देखकर मुहं में पानी आ गया
ठेले लदे हैं मौसमी फलों से
आपने सभी फलों को खूब सराहा ..........लीची पर सुन्दर कविता ...........
ठेले लदे हैं मौसमी फलों से
आपने सभी फलों को खूब सराहा ..........लीची पर सुन्दर कविता ...........
वाह, बढ़िया रचना
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (26-05-2013) के चर्चा मंच 1256 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
बढिया
स्वादिष्ट मौसमी रचना
बढिया
स्वादिष्ट मौसमी रचना
बढिया
स्वादिष्ट मौसमी रचना
अति सुन्दर बाल रचना !
यम्म्म्म्म यम्म्म्म्म ...बहुत रसीली
वाह, लाल लाल लीची देख कर मुहं में पानी आ गया,बहुत ही सुन्दर चित्रों के साथ प्रस्तुतिकरण,धन्यबाद.
चमत्कार देखिए इस साल हमने अभी तक लीची का स्वाद नहीं चखा है ...सुबह होने दीजिए लीची महाराज को लाया जाएगा ...मन भर कर खाया जाएगा...तरबूज तो खा ही रहे हैं खरबूज भी खा लिए...आम तो आम आदमी की पहुंच से बाहर हुआ..फिर भी हमने खूब चख ही लिया...बस लीची की याद आपने दिलाई..तो कल ही देखिए ..पर पता नहीं लीची पर कुछ लिख पाए या नहीं कह नही सकते
मेरी पसंदीदा पंक्तियां - गुच्छा प्राची के मन भाया!
उसने उसको झट कब्जाया!!
बच्चों के कब्जे भी बच्चों जैसे प्यारे होते हैं :)
आपकी इस रचना की कढ़ी अपने फेसबुक पेज - "मैं हिंदी भाषी हूं" पर साझा कर रही हूँ - सूचनार्थ
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