पेंग बढ़ाकर नभ को छू लें, झूला झूलें सावन में।
मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।।
मँहगाई की मार पड़ी है, घी और तेल हुए महँगे,
कैसे तलें पकौड़ी अब, पापड़ क्या भूनें सावन में।
मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।।
हरियाली तीजों पर, कैसे लायें चोटी-बिन्दी को,
सूखे मौसम में कैसे, अब सजें-सवाँरे सावन में।
मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।।
आँगन से कट गये नीम,बागों का नाम-निशान मिटा,
रस्सी-डोरी के झूले, अब कहाँ लगायें सावन में।
मेघ-मल्हारों के गाने को, कभी न भूलें सावन में।।
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