"बालगीत-गिलहरी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Monday, October 28, 2013
"गिलहरी"
बैठ मजे से मेरी छत पर,दाना-दुनका खाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
तुमको पास बुलाने को,
मैं मूँगफली दिखलाता हूँ,
कट्टो-कट्टो कहकर तुमको,
जब आवाज लगाता हूँ,
कुट-कुट करती हुई तभी तुम,
जल्दी से आ जाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
नाम गिलहरी, बहुत छरहरी, आँखों में चंचलता है, अंग मर्मरी, रंग सुनहरी, मन में भरी चपलता है, हाथों में सामग्री लेकर, बड़े चाव से खाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
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5 comments:
बैठ मजे से मेरी छत पर,
दाना-दुनका खाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
वाह !क्या सांगितिकता है बाल गीत में। कर्मठता का सन्देश लिए -
पेड़ों की कोटर में बैठी
धूप गुनगुनी सेंक रही हो,
कुछ अपनी ही धुन में ऐंठी
टुकर-टुकरकर देख रही हो,
भागो-दौड़ो आलस छोड़ो,
सीख हमें सिखलाती हो!
उछल-कूद करती रहती हो,
सबके मन को भाती हो!!
आदरणीय शास्त्री जी,
बहुत ही प्यारा बालगीत है आपका गिलहरियों के पूरे स्वभाव,उनकी गतिविधियों को चित्रित करता हुआ----बच्चों को बहुत ही पसन्द आयेगा।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31-10-2013 के चर्चा मंच पर है
कृपया पधारें
धन्यवाद
बहुत सुन्दर प्रस्तुति १
नई पोस्ट हम-तुम अकेले
मित्र!शुभ दीपावली !!आशा है कि आप सपरिवार सकुशल होंगे |
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