"चन्दा से चाँदनी का आधार माँगता हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Friday, June 6, 2014
मै प्यार का हूँ राही और प्यार माँगता हूँ।
मंजिल से प्यार का ही उपहार माँगता हूँ।।
सूनी सी ये डगर हैं,
अनजान सा नगर हैं,
चन्दा से चाँदनी का आधार माँगता हूँ।
मंजिल से प्यार का ही उपहार माँगता हूँ।।
सूरज चमक रहा है,
जग-मग दमक रहा है,
किरणों से रोशनी का संसार माँगता हूँ।
मंजिल से प्यार का ही उपहार माँगता हूँ।।
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यह प्रीत की है डोरी,
ममता की मीठी लोरी.
मैं स्नेहसिक्त पावन परिवार माँगता हूँ।
मंजिल से प्यार का ही उपहार माँगता हूँ।।
3 comments:
अति उत्तम भाव पूर्ण रचना |
मै प्यार का हूँ राही और प्यार माँगता हूँ।
मंजिल से प्यार का ही उपहार माँगता हूँ।।
बहुत सुन्दर रचना ...
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