"हिन्दी व्यञ्जनावली-अन्तस्थ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
Monday, September 12, 2016
"व्यञ्जनावली-अन्तस्थ"
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“य” से यति वो ही कहलाते!
जो नित यज्ञ-हवन करवाते!
वातावरण शुद्ध हो जाता,
कष्ट-क्लेश इससे मिट जाते!
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“र” से रसना को लो जान!
रथ को हाँक रहे भगवान!
खट्टा, मीठा और चरपरा,
सबकी है इसको पहचान!
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“ल” से लड्डू और लंगूर!
लट्टू घूम रहा भरपूर!
काले मुँह वाले वानर को,
हम सब कहते हैं लंगूर!!
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“व” वन, वनराज महान!
जंगल जीवों का उद्यान!
वर्षा –ऋतु में भीग रहे हैं,
खेत, बाग, वन और किसान!!
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