बालकविता "सिसक-सिसक कर स्लेट जी रही, तख्ती ने दम तोड़ दिया है"
Friday, July 6, 2018
अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
तख्ती और स्लेट
सिसक-सिसक कर स्लेट जी रही,
तख्ती ने दम तोड़ दिया है।
सुन्दर लेख-सुलेख नहीं है,
कलम टाट का छोड़ दिया है।।
दादी कहती एक कहानी,
बीत गई सभ्यता पुरानी।
लकड़ी की पाटी होती थी,
बची न उसकी कोई निशानी।
फाउण्टेन-पेन गायब हैं,
बॉल पेन फल-फूल रहे हैं।
रीत पुरानी भूल रहे हैं,
नवयुग में सब झूल रहे हैं।।
समीकरण सब बदल गये हैं,
शिक्षा का पिट गया दिवाला।
बिगड़ गये परिवेश प्रीत के,
बिखर गई है मंजुल माला।।
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5 comments:
समीकरण सब बदल गये हैं,
शिक्षा का पिट गया दिवाला।
बिगड़ गये परिवेश प्रीत के,
बिखर गई है मंजुल माला।।
...सच अब वे दिन लद चले ...
very useful blog
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waah bahut khub
Very nice...
बहुत ही सुंदर कविता
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