"दोहे्-भेद-भाव को मेटता होली का त्यौहार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
Thursday, March 5, 2015
होली का त्यौहार
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फागुन में नीके लगें, छींटे औ' बौछार।
सुन्दर, सुखद-ललाम है, होली का त्यौहार।।
शीत विदा होने लगा, चली बसन्त बयार।
प्यार बाँटने आ गया, होली का त्यौहार।।
पाना चाहो मान तो, करो मधुर व्यवहार।
सीख सिखाता है यही, होली का त्यौहार।।
रंगों के इस पर्व का, यह ही है उपहार।
भेद-भाव को मेटता, होली का त्यौहार।।
तन-मन को निर्मल करे, रंग-बिरंगी धार।
लाया नव-उल्लास को, होली का त्यौहार।।
भंग न डालो रंग में, वृथा न ठानो रार।
देता है सन्देश यह, होली का त्यौहार।।
छोटी-मोटी बात पर, मत करना तकरार।
हँसी-ठिठोली से भरा, होली का त्यौहार।।
सरस्वती माँ की रहे, सब पर कृपा अपार। हास्य-व्यंग्य अनुरक्त हो, होली का त्यौहार।। |
3 comments:
सटीक व सार्थक सामयिक प्रस्तुति
sundar aur rango se yukt rachna....
Rango ke is tyohar ki apako parivar sahit dher sari shubhkamnayen.
http://hindikavitamanch.blogspot.in/
वाह, रंगमय दोहे. सुंदर, सरल और सामयिक... बधाई
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