कविता : "बस एक मुस्कान दे बहिन"
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* "बस एक मुस्कान दे बहिन"*
सब कुछ था ठीक, सब कुछ था प्यारा,
हर दिन था जैसे कोई त्योहार हमारा।
फिर एक दिन आई वो खामोशी की आंधी,
ना जाने क्यों हो गई बातों...
20 hours ago
7 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
मकर संक्रांति के जाते न जाते एक हूक सी दिल में उठती है कि फागुन कब आएगा। एक अजीब सी कशिश मन को जैसे वशीकरण सी छू लेती है। एक नशा सा तारी होने लगता है। लगता है जैसे आपने मेरे अहसास को समझ लिया हो। बसंत की इस नवीन रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद ! ( खेतों में बालियां डोलती हैं को कृपया संशोधित करें ) उत्तम या अत्युत्तम जैसे विशेषण जोड़ने की क्षमता मुझ में नहीं। मैं तो ऐसी कृति पाकर निहाल-निहाल होना जनता हूँ।
कृपया क्षमा करें। " झूलती" को मैंने" डोलती" समझ कर संशोधन करने को लिखा था।
मौसम के अनुकूल मनमोहक कविता।अति सुन्दर।
बहुत सुन्दर गीत।
बहुत सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
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