" गगन में छा गये बादल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
Friday, June 22, 2012
"बादल" शीर्षक से यह गीत लिखा था। इसे मैं अपनी आवाज में प्रस्तुत कर रही हूँ- श्रीमती अमर भारती बड़ी हसरत दिलों में थी, गगन में छा गये बादल। हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।। गरज के साथ आयें हैं, बरस कर आज जायेंगे, सुहानी चल रही पुरवा, सभी को भा गये बादल। हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।। धरा में जो दरारें थी, मिटी बारिश की बून्दों से, किसानों के मुखौटो पर, खुशी चमका गये बादल। हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।। पवन में मस्त होकर, धान लहराते फुहारों में, पहाड़ों से उतर कर, मेह को बरसा गये बादल। हमारे गाँव में भी आज, चल कर आ गये बादल।। |
13 comments:
वाह, बहुत खूब!
बेहतरीन रचना
्बहुत सुन्दर
जितना सुन्दर गीत उससे भी प्यारा मधुर गायन अमर भारती जी को बहुत बहुत बधाई
shandaar geet ko jaandaar bana diya aapne...bahut hee accha ghazal geet
खूबसूरत !
वाह ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...
सावन के मौसम में छा गये मयंक ,
बारिश पर एक रचना लेकर आ गये मयंक.
गीत से ब्लॉग मंच को सजा गये मयंक,
अमर भारती की आवाज सुना गये मयंक.
मोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
सर मै काफी अरसे से अपनी ब्लॉग मास्टर्स टेक भी ब्लोग्मंच पर जमा करवाना चाह रहा हूँ.आपको इसका लिंक भी भेजा,मगर मुझे अभी तक भी ये ब्लॉग यहाँ नज़र नही आई.
मोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
बहुत खूब....
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बहुत सुंदर लिखा आदरणीय शास्त्रीजी ने !
बहुत सुंदर स्वर में गाया अमर भारती जी आपने…
वाह !
मां सरस्वती का प्रसाद ऐसे ही मिल-जुल कर बांटते रहें आप दोनों हमेशा …
हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
आनंद दायक रचना ...आभार आपका !
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