"आ गई हैं सर्दियाँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक')
Monday, December 9, 2013
आ गई हैं सर्दियाँ मस्ताइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
पर्वतों पर नगमगी चादर बिछी.
बर्फबारी देखने को जाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
रोज दादा जी जलाते हैं अलाव,
गर्म पानी से हमेशा न्हाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
रात लम्बी, दिन हुए छोटे बहुत,
अब रजाई तानकर सो जाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
खूब खाओ सब हजम हो जाएगा,
शकरकन्दी भूनकर के खाइए।
बैठकर के धूप में सुस्ताइए।।
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5 comments:
आप की यह रचना सामयिक और रोचक है ।
वाह बहुत खूब !
सर्दियों का मजा तो इन्हीं सब में है...बहुत खूब
बढ़िया है गुरुवर-
आभार आपका-
हल्की-फुल्की, पर रोचक प्रस्तुति
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