मित्रों!
बहुत दिनों से एक विचार मन में दबा हुआ था! हमारे बहुत से मित्र अपने ब्लॉग पर या फेसबुक पर अपनी प्रविष्टि लगाते हैं। वह यह तो चाहते हैं कि लोग उनके यहाँ जाकर अपना अमूल्य समय लगा कर कोई बढ़िया सी टिप्पणी दें। इसके लिए कुछ लोग तो मेल में लिंक भेजकर या लिखित बात-चीत में भी अपने लिंक भेजते रहते हैं। अगर नकार भी दो तो वे फिर भी बार-बार अपना लिंक भेजते रहते हैं। लेकिन स्वयं किसी के यहाँ जाने की जहमत तक नहीं उठाते हैं और कुछ लोग तकनीकी का ज्ञान न होने के कारण शब्द पुष्टिकरण लगा देते हैं। जिससे टिप्पणी देने में अनावश्यक समय लगता है।लेकिन वह क्षम्य है। मगर कुछ लोग तो तकनीकी के विशेषज्ञ होकर उसका प्रदर्शन करते हैं। जहाँ टिप्पणी करने में पसीने छूट जाते हैं। पहले नाम भरो, फिर ई-मेल भरो, वेबसाइट का भी नाम देना पड़ता है, तब कहीं कमेंट लिखने की बारी आती है। मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि क्या यही उनका तकनीकी ज्ञान है। जबकि कमेंट करने पर टिप्पणीदाता का लिंक तो स्वतः ही आ जाता है।
उनके लिए मेरा एक सुझाव है-
"ऐसे मित्र अपने ब्लॉग या फेसबुक के खाते पर टिप्पणी का विकल्प न लगायें। लोग आयेंगे जरूर और अच्छे मन से आपकी प्रविष्टि पढ़ेंगे और चलते बनेंगे!"
प्रसंगवश् मुझे एक कथा याद आ रही है-
एक महान वैज्ञानिक ने दो बिल्लियाँ पाली हुई थीं। सर्दी के मौसम में वैज्ञानिक को उन्हें अपने कमरे में ही रखना पड़ता था। लेकिन वो बिल्लियाँ रात में शौच आदि करके घर को गन्दा कर देती थीं।
वैज्ञानिक ने एक दिन कारपेंटर को अपने यहाँ बुलाया और कहा कि इन दो बिल्लियों को बाहर निकलने के लिए दरवाजे में दो छे्द कर दो। बड़ी बिल्ली के लिए बड़ा छेद और छोटी बिल्ली के लिए छोटा छेद।
वैज्ञानिक की बात सुनकर कारपेंटर को हँसी आ गई। वैज्ञानिक ने उससे पूछा कि तुम मेरी बात पर हँसे क्यों?
तब कारपेंटर ने बताया कि साहब जी मैं एक ही सूराख़ से दोनों बिल्लियों को बाहर निकाल सकता हूँ।
वैज्ञानिक ने कहा-यह तो असम्भव है। मुझे प्रैक्टीकल करके दिखाओ।
कारपेंटर ने दरवाजे में बड़ा सुराख करके वैज्ञानिक से कहा कि अब आ्रप दोनों बिल्लियों को अन्दर बन्द कीजिए।
वैज्ञानिक ने जब दोनों बिल्लियों को अन्दर बन्द करके दरवाजा बन्द किया और बिल्लियों को आवाज दी तो पहले बड़ी बिल्ली और उसके बाद छोटी बिल्ली एक ही छेद से बाहर निकल गयी।
मेरा सुझाव अच्छा लगे तो इस कड़वे घूँट का पान करें।
अन्यथा इसे गम्भीरता से न लें!
32 comments:
आदरणीय शास्त्री सर यह एक सत्य है जो कोई और न कह सका और आपने कह दिया। आपका सुझाव सही और सार्थक है मैं आपसे बिलकुल सहमत हूँ।
अपना न्यौता बांटते, पढवाते निज लेख |
स्वयं कहीं जाते नहीं, मारें शेखी शेख |
मारें शेखी शेख, कभी दूजे घर जाओ |
इक प्यारी टिप्पणी, वहां पर जाय लगाओ |
करो तनिक आसान, टिप्पणी करना भाये |
कभी कभी रोबोट, हमें भी बहुत सताए ||
मैं स्वयं परेशान हूं। विदेशों में रह रहे एकाध ब्लॉगर जो कुछ समय पहले तक मेरे ब्लॉग पर नियमित टिप्पणीकार हुआ करते थे,अब केवल गूगल प्लस पर साझा करें लिंक पर क्लिक कर निश्चिन्त हो जाते हैं। इतना भी ध्यान नहीं रहता कि जब वे पोस्ट साझा कर रहे होते हैं उस वक्त भारत में सुबह के चार-पांच बज रहे होते हैं जिनकी सूचना दुर्भाग्य से मोबाइल पर आती है और अब तो हमारी नींद ऐसे अलर्ट से ही खुलती है।
आप सही कह रहे हैं शास्त्री जी । सचमुच वर्ड वेरिफिकेशन एक समस्या है और जैसा कि आपने कहा कुछ लोग तो टिप्पणी करना बहुत कठिन बना देते हैं अपने तकनीकी ज्ञान का उपयोग करके । पर एक बात तो सच है कि टिप्पणी का आना सब को अच्छा लगता है ।
बहुत सही बात कही आपने शास्त्री जी | अगर कोई दूसरों से यह अपेक्षा रखता है कि वो उसके ब्लॉग पर आए, पोस्ट पढ़े और उनपे टिप्पणी करे तो सर्वप्रथम उसे खुद ये सब करना पड़ेगा | पाठकों के लिए अपने ब्लॉग को आसान बनाना पड़ेगा |
Virendra Kumar Sharma26 October 2012 11:33
अपना न्यौता बांटते, पढवाते निज लेख |
स्वयं कहीं जाते नहीं, मारें शेखी शेख |
मारें शेखी शेख, कभी दूजे घर जाओ |
इक प्यारी टिप्पणी, वहां पर जाय लगाओ |
करो तनिक आसान, टिप्पणी करना भाये |
कभी कभी रोबोट, हमें भी बहुत सताए ||
हाँ कई ब्लोगाचारी महारथी हैं ,
स्पैम बोक्स बने टिपण्णी डकारें .
इनके ब्लोगों को प्रभु तारें ,
प्रभु भाव यह खुद ही धारें .
ReplyDelete
हाँ कई ब्लोगाचारी महारथी हैं ,
स्पैम बोक्स बने टिपण्णी डकारें .
इनके ब्लोगों को प्रभु तारें ,
प्रभु भाव यह खुद ही धारें .
राधारमण जी सही कह रहें हैं तकनीकी ज्ञान न होने की वजह से हम तो कई मर्तबा ब्लॉग पोस्ट तक पहुँच ही नहीं पायें हैं .अब जाके थोड़ा थोड़ा इल्म है ब्लॉग पोस्ट तक पहुंचे तो कैसे पहुंचें .राधा रमण जी मैं आपके
ब्लॉग पे आता रहा हूँ आइन्दा भी यह कर्म जारी रहेगा .मुझे अपने बारे में कैसा भी संभ्रम नहीं है .खुली बाहों से ब्लोगिंग में आया हूँ 2008 सितम्बर से .अब तक 50000से ज्यादा पोस्ट प्रकाशित कभी किसी को
इनका ब्योरा आज तक नहीं दिया .अभी बहुत काम करना है .अलबत्ता कोफ़्त होती है कुछ के यहाँ नियमित जाकर भी ये लोग पलट के नहीं देखते हैं .एक्स एक्स और एक्स वाई बोले तो लोग लुगाई दोनों शामिल हैं
इस महानता बोध में .सम्मोहन में .
अच्छा किया आपने कह डाला - धन्यवाद!
कहिये तो गिनती हो जाए ,
कितने यहाँ ब्लॉग गौरव ,ब्लॉग गर्विताएं
हुकुम करो तो नाम बताएं ,
या मुद्दा आगे खिसकाएं .
ब्लॉगमंच
अपना न्यौता बांटते, पढवाते निज लेख |
स्वयं कहीं जाते नहीं, मारें शेखी शेख |
मारें शेखी शेख, कभी दूजे घर जाओ |
इक प्यारी टिप्पणी, वहां पर जाय लगाओ |
करो तनिक आसान, टिप्पणी करना भाये |
कभी कभी रोबोट, हमें भी बहुत सताए ||
हमको भी ये बहुत सताएं ,
अक्सर अपनी पीठ दिखाएं .
पीड़ा ये सामूहिक भैया ,
इनके नाम खोल दो भैया .
Cool blog! Is your theme custom made or did you download it from somewhere? A design like yours with a few simple adjustements would really make my blog jump out. Please let me know where you got your design. Kudos
लो फिर भी नहीं मानेंगे
लो = लोग
अच्छा सुझाव है जरुर पालन करेंगे
आभार विस्तृत बता दिया है !
मैं आपकी बात से सहमत हूँ
वाह क्या सुझाव दिया हैं आपने :)))
समझने वाले के लिये इशारा काफी होता है पर अंधे बहरे गूंगे के लिये किसी इशारे का कोई मतलब कहाँ होता है जो वाकई में हम हैं हम कहने में बुरा लगे किसी को तो क्षमा करें और उसे मैं हूँ कर के पढ़ लें !
35) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पान करें"मित्रों! बहुत दिनों से एक विचार मन में दबा हुआ था! हमारे बहुत से मित्र अपने
ब्लॉग पर या फेसबुक पर अपनी प्रविष्टि लगाते हैं। वह यह तो चाहते हैं कि लोग उनके यहाँ जाकर अपना अमूल्य समय लगा कर विचार कोई बढ़िया सी
टिप्पणी दें। केवल इतना ही नहीं कुछ लोग तो मेल में लिंक भेजकर या लिखित बात-चीत में भी अपने लिंक भेजते रहते हैं। अगर नकार भी दो तो वे फिर
भी बार-बार अपना लिंक भेजते रहते हैं। लेकिन स्वयं किसी के यहाँ जाने की जहमत तक नहीं उठाते हैं..
एक प्रतिक्रिया :वीरुभाई
ब्लॉग का मतलब ही है संवाद !संवाद एक तरफा नहीं हो सकता .संवाद है तो उसे विवाद क्यों बनाते हो ?जो दोनों के मन को छू जाए वह सम्वाद है जो
एक
के मन को आह्लादित करे ,दूसरे
के मन को तिरस्कृत वह संवाद नहीं है .
भले यूं कहने को विश्व आज एक गाँव हो गया है लेकिन व्यक्ति व्यक्ति से यहाँ बात नहीं करता .पड़ोसी पड़ोसी को नहीं जानता .व्यक्ति व्यक्ति के बीच
का संवाद ख़त्म हो रहा है .जो एक प्रकार का खुलापन था वह खत्म हो रहा है ब्लॉग इस दूरी को पाट सकता है .ब्लॉग संवाद को जिंदा रख सकता है .
इधर सुने उधर सुनाएं .कुछ अपनी कहें कुछ हमारी सुने .
गैरों से कहा तुमने ,गैरों को सुना तुमने ,
कुछ हमसे कहा होता ,कुछ हमसे सुना होता .
जो लोग अपने गिर्द अहंकार की मीनारें खड़ी करके उसमें छिपके बैठ गएँ हैं वह एक नए वर्ग का निर्माण कर रहें हैं .श्रेष्ठी वर्ग का ?
बतलादें उनको -
मीनार किसी की भी सुरक्षित नहीं होती .लोग भी ऊंची मीनारों से नफरत करते हैं .
बेशक आप महानता का लबादा ओढ़े रहिये ,एक दिन आप अन्दर अंदर घुटेंगे ,और कोई पूछने वाला नहीं होगा .
अहंकार की मीनारें बनाना आसान है उन्हें बचाए रखना मुश्किल है -
लीजिए इसी मर्तबा डॉ .वागीश मेहता जी की कविता पढ़िए -
तर्क की मीनार
मैं चाहूँ तो अपने तर्क के एक ही तीर से ,आपकी चुप्पी की मीनार को ढेर कर दूं -
तुम्हारे सिद्धांतों की मीनार को ढेर कर दूं ,
पर मैं ऐसा करूंगा नहीं -
इसलिए नहीं कि मैं तुमसे भय खाता हूँ ,सुनो इसका कारण सुनाता हूँ ,
क्योंकि मैं जानता हूँ -
क़ानून केवल नाप झौंख कर सकता है ,
क़ानून के मदारी की नजर में ,गधे का बच्चा और गाय का बछड़ा दोनों एक हैं -
क्योंकि दोनों नाप झौंख में बराबर हैं .
अभी भी नहीं समझे ! तो सुनो ध्यान से ,
जरा इत्मीनान से ,कि इंसानी भावनाओं के हरे भरे उद्यान को -
चर जाने वाला क़ानून अंधा है ,
कि अंधेर नगरी की फांसी का फंदा है ,
जिसे फिट आजाये वही अपराधी है ,
और बाकी सबको आज़ादी है .
(समाप्त )
वीरुभाई :
इसीलिए मैं कहता हूँ ,कुछ तो दिल की बात कहें ,कुछ तो दिल की बात सुने।
नावीन्य बना रहेगा ब्लॉग जगत में
35) "मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पान करें"मित्रों! बहुत दिनों से एक विचार मन में दबा हुआ था! हमारे बहुत से मित्र अपने
ब्लॉग पर या फेसबुक पर अपनी प्रविष्टि लगाते हैं। वह यह तो चाहते हैं कि लोग उनके यहाँ जाकर अपना अमूल्य समय लगा कर विचार कोई बढ़िया सी
टिप्पणी दें। केवल इतना ही नहीं कुछ लोग तो मेल में लिंक भेजकर या लिखित बात-चीत में भी अपने लिंक भेजते रहते हैं। अगर नकार भी दो तो वे फिर
भी बार-बार अपना लिंक भेजते रहते हैं। लेकिन स्वयं किसी के यहाँ जाने की जहमत तक नहीं उठाते हैं..
एक प्रतिक्रिया :वीरुभाई
ब्लॉग का मतलब ही है संवाद !संवाद एक तरफा नहीं हो सकता .संवाद है तो उसे विवाद क्यों बनाते हो ?जो दोनों के मन को छू जाए वह सम्वाद है जो
एक
के मन को आह्लादित करे ,दूसरे
के मन को तिरस्कृत वह संवाद नहीं है .
भले यूं कहने को विश्व आज एक गाँव हो गया है लेकिन व्यक्ति व्यक्ति से यहाँ बात नहीं करता .पड़ोसी पड़ोसी को नहीं जानता .व्यक्ति व्यक्ति के बीच
का संवाद ख़त्म हो रहा है .जो एक प्रकार का खुलापन था वह खत्म हो रहा है ब्लॉग इस दूरी को पाट सकता है .ब्लॉग संवाद को जिंदा रख सकता है .
इधर सुने उधर सुनाएं .कुछ अपनी कहें कुछ हमारी सुने .
गैरों से कहा तुमने ,गैरों को सुना तुमने ,
कुछ हमसे कहा होता ,कुछ हमसे सुना होता .
जो लोग अपने गिर्द अहंकार की मीनारें खड़ी करके उसमें छिपके बैठ गएँ हैं वह एक नए वर्ग का निर्माण कर रहें हैं .श्रेष्ठी वर्ग का ?
बतलादें उनको -
मीनार किसी की भी सुरक्षित नहीं होती .लोग भी ऊंची मीनारों से नफरत करते हैं .
बेशक आप महानता का लबादा ओढ़े रहिये ,एक दिन आप अन्दर अंदर घुटेंगे ,और कोई पूछने वाला नहीं होगा .
अहंकार की मीनारें बनाना आसान है उन्हें बचाए रखना मुश्किल है -
लीजिए इसी मर्तबा डॉ .वागीश मेहता जी की कविता पढ़िए -
तर्क की मीनार
मैं चाहूँ तो अपने तर्क के एक ही तीर से ,आपकी चुप्पी की मीनार को ढेर कर दूं -
तुम्हारे सिद्धांतों की मीनार को ढेर कर दूं ,
पर मैं ऐसा करूंगा नहीं -
इसलिए नहीं कि मैं तुमसे भय खाता हूँ ,सुनो इसका कारण सुनाता हूँ ,
क्योंकि मैं जानता हूँ -
क़ानून केवल नाप झौंख कर सकता है ,
क़ानून के मदारी की नजर में ,गधे का बच्चा और गाय का बछड़ा दोनों एक हैं -
क्योंकि दोनों नाप झौंख में बराबर हैं .
अभी भी नहीं समझे ! तो सुनो ध्यान से ,
जरा इत्मीनान से ,कि इंसानी भावनाओं के हरे भरे उद्यान को -
चर जाने वाला क़ानून अंधा है ,
कि अंधेर नगरी की फांसी का फंदा है ,
जिसे फिट आजाये वही अपराधी है ,
और बाकी सबको आज़ादी है .
(समाप्त )
वीरुभाई :
इसीलिए मैं कहता हूँ ,कुछ तो दिल की बात कहें ,कुछ तो दिल की बात सुने।
नावीन्य बना रहेगा ब्लॉग जगत में .
केवल परम हितैषी ही,भला सुझाव देते हैं |
'प्यार के बादल' ही हमें छाँव देते हैं ||
असल में वर्ड वेरिफिकेशन से काफी लोग अनजान हैं.उन्हें इसे हटाने के बारे में ज्ञान नही होता.ख़ास कर नए ब्लोगर ,बिचारे इसकी जानकारी नही रखते.कोई भी जान बुझकर ये नही चाहता की पाठक उसके पोस्ट्स पर कमेंट्स ना दें.
इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
भड़ास मन की निकालिए, रखिये खुले विचार।
भेद-भाव अपनाइ बिनु, बांटे सबको प्यार।।
जग आभासी ब्लॉग का, पिलाते कड़वे घूँट।
वक्त वक्त की बात है, किस करवट बैठे ऊँट।।
आपका सुझाव सर्वथा उचित है शास्त्री जी.
"कई ब्लोगर शब्द पुष्टिकरण लगा देते हैं। जिससे टिप्पणी देने में अनावश्यक समय लगता है।" और कई बार तो शब्दों की पुष्टि ही नहीं हो पाती है जिससे समय की बरवादी तो होती ही है साथ ही अपनी बात रखने से भी बंचित रह जाते हैं, एक और बात की अनावश्यक गैजेट भी परेशानी का सबब बन जाते हैं, अंत में छोटी सी कहानी काफी प्रेरक लगी.....आभार.........
बहुत सही कहा आपने ...आपकी बात से सहमत हैं .. तकनीकी मामले में हम फिस्सड्डी है बस मदद जरुर मांग लेते हैं ....
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